कमजोर जीव-जंतुओं को सताना नहीं चाहिए

जीव-जंतु हमारे मित्र है। हमें उनके साथ मिलकर रहना चाहिए। कभी भी किसी कमजोर जीव-जंतुओं को सताना नहीं चाहिए । हमें उनकी रक्षा व देखभाल करनी चाहिए। प्रस्तुत पाठ में हमें यही शिक्षा दी गई है।


आयुष अपने माता-पिता के साथ एक छोटे-से घर में रहता था। उसके कोई भाई व बहन न थे। किंतु उसकी एक चचेरी बहन थी। उसका नाम प्रिया था । वह एक बड़े व पुराने से घर में रहती थी। उसके पिता बहुत धनी थे। उनके पास बहुत सारे कीमती वस्त्र, खिलौने व एक नया कंप्यूटर था। प्रत्येक वर्ष छुट्टियों में प्रिया रोमांचक स्थानों पर घूमने जाती थी। एक वर्ष वह फ्रांस घूमने गई। अगले वर्ष वह इंग्लैंड गई और एक वर्ष वह जापान भी गई। उसने कई नई भाषाएँ भी सीखीं।


आयुष ने एक दिन जब प्रिया घर से दूर गई हुई थी, अपने घर के पास सड़क पर एक बिल्ली का बच्चा देखा। आयुष उसे उठाकर अपने घर ले आया। वह बिल्ली का बच्चा पतला और कमजोर था । लेकिन वह जोर से आवाज कर रहा था। आयुष बिल्ली के बच्चे को रसोइघर में ले आया। उसने एक कटोरा दूध बिल्ली के बच्चे के सामने रख दिया।

                                 

बिल्ली के बच्चे ने आवाज करनी बंद कर दी। उसने जल्दी-जल्दी दूध पीना शुरू कर दिया। यह देखकर आयुष हँसने लगा। आयुष ने कहा, “कोई भी तुमसे दूध छीनकर नहीं ले जाएगा, इसलिए धीरे-धीरे पियो। बिल्ली का बच्चा पेट भरने तक दूध पीता रहा। शाम को आयुष ने अपनी मम्मी से पूछा, “मम्मी क्या मैं बिल्ली के बच्चे को घर पर रख लूँ।” उसकी मम्मी ने हाँ कर दी और आयुष बहुत खुश हुआ।


आयुष बिल्ली के बच्चे को अपने कमरे की सीढ़ियों पर ले गया। उसने बिल्ली के बच्चे के बालों को धोया और उन पर कंघा किया। उसके बाद उसने उनके पूरे शरीर पर पाउडर लगाया। आयुष ने बिल्ली के बच्चे को फर्श पर छोड़ दिया। बिल्ली का बच्चा चटाई पर खेलता रहा और आयुष अपना गृहकार्य करता रहा।

सोने के समय बिल्ली के बच्चे ने आयुष के हाथ चाटे और उसके तकिए पर लेट गया। आयुष और बिल्ली का बच्चा जल्दी ही सो गए।


उस रात एक अजीब घटना घटी। आयुष ने एक आवाज सुनी और जाग गया। कमरे में अंधेरा था। आयुष उठकर बैठ गया। उसने अपने पलंग के पास दो चमकती हुई आँखें देखी।


"यह क्या है ? वहाँ कौन है ?" आयुष ने दबी हुई आवाज में कहा। उसने कमरे की लाईट जलाई। पलंग के निचले सिरे पर उसके पैरों के बराबर में एक बहुत बड़ी काली 'बिल्ली बैठी थी।


आयुष घबरा गया। वह अपने पापा को आवाज देना ही चाह रहा था कि तभी बिल्ली ने बोलना शुरू किया, आयुष को सुनकर आश्चर्य हुआ।


"मुझसे मत डरो। मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगी। मैं अपने बेटे को देखने आई हूँ," बिल्ली बोली।


आयुष ने तकिये पर सोते हुए बिल्ली के बच्चे को देखा। "मैंने उसे सड़क पर पाया था। तुम उसे मुझसे दूर नहीं ले जा सकती," आयुष ने कहा ।


"नहीं-नहीं" मैं उसे खिला- पिला नहीं सकती और न ही उसकी देखभाल कर सकती हूँ।" काली बिल्ली ने कहा ।

"मुझे यह सुनकर दुःख हुआ," आयुष बोला।


"तुम एक बहुत अच्छे लड़के हो और मैं समझती हूँ तुम इसकी अच्छी देखभाल करोगे। अगर तुम्हें अच्छा लगे तो तुम इसे अपने पास रख सकते हो,' बिल्ली ने कहा।


"धन्यवाद" आयुष ने कहा।


"लेकिन मैं तुमसे एक विनती करती हूँ, कि मुझे इससे वर्ष में एक बार मिलने देना और मैं तुम्हें हर वर्ष एक वरदान दूँगी," बिल्ली ने कहा।


"मैं तुमसे अभी एक वरदान माँग सकता हूँ," आयुष बोला, “हाँ जो वरदान माँगना चाहो माँग लो।" बिल्ली ने कहा।


"मुझे एक अच्छा घर दे दो," आयुष ने वर माँगा।


बिल्ली ने कहा, “अब तुम एक अच्छे घर में रहोगे।" यह कहकर बिल्ली अदृश्य हो गई। और उसने अपने आपको एक  बहुत बड़े व सुन्दर मकान में पाया।

1 टिप्पणी:

Blogger द्वारा संचालित.