गुब्बारे की खोज


यह बात सन् 1872 की है। फ्रांस में दो भाई रहते थे-जोसेफ और स्टीफन मॉट गॉल्फियर दोनों भाई कागज के लिफाफे बनाकर अपना गुजारा चलाते थे। एक दिन दोनों सैर के लिए नदी किनारे गए और नाव पर सवार हो गए। नाव की सैर करते-करते अचानक जोसेफ नदी में गिर पड़ा। नदी के पानी से उसकी कमीज भीग गई।

घर पहुँचकर जोसेफ ने जलती हुई अँगीठी के ऊपर एक तार पर कमीज सूखने के लिए फैला दी। उसके पास दूसरी कमीज नहीं थी, इसीलिए वह कमीज को जल्दी सुखाना चाहता था। आग की आँच से कमीज सूख रही थी। साथ ही अँगीठी की आँच से निकलने वाली हवा के कमीज में फँस जाने के कारण वह ऊपर की ओर उड़ रही थी।


यह देखकर जोसेफ के मस्तिष्क में एक विचार आया। उसने सोचा, आग से निकलती इस गर्म हवा को यदि थैले में भरा जाए तो थैला भी कमीज की तरह ऊपर उड़ने लगेगा। जोसेफ ने अपना विचार स्टीफन को बताया। स्टीफन को भी यह विचार पसंद आया। जोसेफ और स्टीफन ने मिलकर ढेर सारी लकड़ियाँ जमा कर उन्हें जलाया। उनसे उठा धुआँ उन्होंने थैले में भरा। धुआँ भरने से थैला ऊपर की ओर उड़ा, लेकिन वह अधिक समय तक उड़ न सका। थोड़ी देर बाद वह जमीन पर गिर गया।


दोनों भाई अपने प्रयोग की असफलता पर निराश नहीं हुए। वे इस दिशा में निरंतर प्रयोग करते रहे। बरसों बाद 1883 ई० में उनका परिश्रम रंग लाया। उन्होंने जनता के सामने अपने प्रयोग का प्रदर्शन किया।

इसके लिए दोनों ने मोटे कपड़े का एक गुब्बारा बनाया। पैंतीस फुट ऊँचे एक चबूतरे पर बाँस की सहायता से इस गुब्बारे को उलटा लटकाया गया। चबूतरे पर ढेर सारी लकड़ियाँ जलाकर धुआँ किया गया। आग का धुआँ जब गुब्बारे के भीतर भर गया तो गुब्बारे को खोल दिया गया। गर्म हवा से भरा गुब्बारा लगभग छह हजार फुट की ऊँचाई तक उड़ा और फिर वापस धरती पर लौट आया।


बाद में दोनों भाइयों ने गुब्बारे के नीचे जलती हुई एक अँगीठी बाँध दी। गुब्बारा तब तक उड़ता रहा, जब तक अँगीठी जलती रही। अँगीठी बुझने के बाद गुब्बारा जमीन पर गिर पड़ा


उनके इन प्रयोगों के आधार पर ही आगे चलकर हवाई जहाज का आविष्कार हुआ।

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