सुलतान ग्यासुद्दीन का उचित न्याय

सुलतान ग्यासुद्दीन 17वीं सदी का एक न्यायप्रिय एवं दयालु शासक था, जिसने उस समय पूरे पूर्वी भारत पर शासन किया। लोग उसकी बुद्धिमानी एवं न्याय की प्रशंसा करते थे। प्रस्तुत पाठ में हमें यही बताया गया है, कि हमें अपने कर्तव्य का पालन समय से व सही प्रकार करना चाहिए।


सुलतान ग्यासुद्दीन एक प्रसिद्ध पठान शासक था। उसने 17वीं सदी के दौरान पूरे पूर्वी भारत पर शासन किया। वह एक दयालु व न्यायप्रिय शासक था। लोग उसकी बुद्धिमानी व न्याय के कारण उसका सम्मान करते थे।


एक दिन वह कुछ दरबारियों के साथ शिकार करने गया। जब वह शिकार कर रहा था तो दुर्भाग्यवश एक तीर एक छोटे लड़के को लग गया और वह मर गया।


वह लड़का एक गरीब आदमी का इकलौता पुत्र था। जब उस गरीब आदमी को उसके बेटे की मृत्यु के बारे में पता लगा तो वह बहुत रोया और काजी के पास गया, वह कस्बे का न्यायाधीश था।


उस आदमी ने काजी को पूरी घटना बताई और न्याय माँगा। काजी सोच में पड़ गया।

वह सोचने लगा कि यदि वह मुकदमे को स्वीकार करता है, तो उसे सुलतान को बुलाना पड़ेगा और | आवश्यकता पड़ने पर उसे दंड भी देना होगा और यदि वह मुकदमे को स्वीकार नहीं करता है तो वह अपने कर्त्तव्यपालन में असफल हो जाएगा। काफी देर सोचने के बाद काजी ने पहला विकल्प चुना। उसने गरीब आदमी की शिकायत को स्वीकार कर लिया और उससे अगले दिन न्यायालय में उपस्थित होने को कहा।


अब काजी को सुलतान को फरमान भेजने का कठिन कार्य भी करना था। उसने अपने एक सहायक को दूत के रूप में सुलतान के पास भेजने का निर्णय लिया। काजी का सहायक यह सुनकर चिंता में पड़ गया कि यदि वह काजी की आज्ञा का उल्लंघन करता है तो काजी उसे दंड देगा और यदि वह सुलतान के पास काजी का  फरमान लेकर जाता है तो सुलतान उसे और भी कड़ा दंड देगा।

अंत में उसने अपने कर्त्तव्यपालन के लिए साहस एकत्र किया। वह सुलतान के महल में गया और महल के बाहर खड़ा हो गया। उसका साहस कमजोर पड़ गया और वह वापस जाने की सोचने लगा किंतु वह निष्कासित होने के डर से वापस न जा सका। अचानक उसने एक योजना बनाई। उसने ऊँची आवाज में अजान (प्रार्थना) पढ़ी। सुलतान बेसमय की अजान सुनकर नाराज हुआ। उसने दूत को गिरफ्तार करने के लिए अपने सिपाही भेजे। दूत को सुलतान के सामने लाया गया। वह डर से काँप रहा था।


"तुम कौन हो और तुमने यह घटिया कार्य क्यों किया?" सुलतान ने दूत से पूछा। दूत ने हाथ जोड़कर कहा, "बादशाह सलामत, कृपया मुझे माफ कीजिए। मैं अपना कर्तव्य निभा रहा था। काजी ने मुझे आपको न्यायालय में बुलाने के लिए भेजा है। आपको कल सुबह काजी के सामने पेश होना है। यह बताने के लिए काजी ने मुझे आपके  पास भेजा है। चूँकि मुझे आपके पास सीधा आने में डर लग रहा था इसलिए मैंने आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए यह कार्य किया।"


सुलतान दूत के कर्त्तव्यपालन की निष्ठा से प्रसन्न हुआ। उसने काजी की आज्ञा को मानने का वायदा किया। सुलतान काजी के सामने उपस्थित होने को उत्सुक था। वह काजी के न्याय को परखना चाहता था।


अगले दिन सुबह काजी न्यायालय में था। पूरा न्यायालय भीड़ से भरा हुआ था। प्रत्येक व्यक्ति सुलतान के खिलाफ मुकदमा सुनने को उत्सुक था। सुलतान ने अपने ढीले कुर्ते में एक तलवार छिपा रखी थी। सुलतान न्यायालय में पहुँचा। जैसे ही सुलतान ने न्यायालय में प्रवेश किया, काजी को छोड़कर सभी व्यक्ति उसके सम्मान में खड़े हो गए।


गरीब आदमी को मुकदमा सुनाने के लिए बुलाया गया। गरीब आदमी ने पिछले दिन उसके बेटे के साथ हुई घटना को बताया। यह सुनने के बाद काजी ने सुलतान की ओर मुँह करके कहा, “आपने अपने तीर से इस गरीब आदमी के पुत्र को मार दिया। आप एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या के अपराधी हैं। मैं तुम्हें इस गरीब आदमी की वित्तीय सहायता करने और जीवनभर उसका ध्यान रखने का आदेश देता हूँ।"


सुलतान ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। उसने तुरंत गरीब आदमी से क्षमा माँगी और पाँच सौ अशरफियों से भरा थैला उसे दे दिया। उसने गरीब आदमी को अपने महल के पास एक घर दे दिया। जब मुकदमे का निर्णय हो गया तो काजी अपनी सीट से उठा और विनम्रतापूर्वक सुलतान को अपने स्थान पर बैठने के लिए कहा।

सुलतान ने काजी से कहा, “काजीजी, यदि आज आप अपने न्याय में असफल हो जाते तो मैं इस तलवार से आपको मार देता।” सुलतान ने अपने कुर्ते में छिपी तलवार काजी को दिखाई।


काजी एक क्षण शांत रहने के बाद बोला, “श्रीमान, मुझे माफ कीजिए। यदि आप मेरे आदेशों को नहीं मानते तो मैं इस कोड़े से आपकी खाल उधेड़ देता। काजी ने अपने कुर्ते में छिपा कोड़ा सुलतान को दिखाते हुए कहा ।” काजी ने पुनः कहा, “अल्लाह का शुक्र है हम दोनों ने अपना-अपना कर्त्तव्य पूरी ईमानदारी से निभाया।"


सुलतान ने अपने ईमानदार और निडर काजी पर गर्व करते हुए उसे गले लगाया।

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