चूहा और उसकी बेटी

 एक चूहा था। उसका घर गंगा नदी के किनारे था। चूहा अपनी बेटी के साथ रहता था। चूहे की बेटी सुंदर थी। वह अपनी पुत्री के विवाह के लिए बहुत चिंतित रहता था।


एक दिन चूहा नदी के किनारे हरी घास पर लेटा आकाश की ओर देख रहा था। वह सोच रहा था, कि 'मैं अपनी पुत्री के लिए एक खूबसूरत व योग्य वर ढूँढ़ने कहाँ जाऊँ ?"


नीले आकाश में सूर्य तेजी से चमक रहा था। अचानक चूहा उछला और सूरज की ओर संकेत करते हुए खुशी से चिल्लाकर बोला, “सूरज मेरी पुत्री के लिए एकदम योग्य वर है।"

चूहा खुशी-खुशी दौड़कर घर आया और अपने छोटे-से थैले में जरूरी वस्तुएँ रखी और तुरंत सूरज के महल की ओर चल दिया।


सूरज के महल में सभी वस्तुएँ सोने की तरह चमक रही थीं। "तुम क्या चाहते हो मूषकराज" सूरज ने चूहे से कहा।


चूहे ने कहा, "हे सूर्यदेव! आप शक्तिशाली व सुंदर हो। क्या आप मेरी पुत्री से विवाह करोगे।"


"क्या मैं!" सूरज ने कहा।


सूरज चूहे को निराश नहीं करना चाहता था। इसलिए सूरज ने मुस्कराकर कहा, "मेरे प्रिय मित्र! मैं शक्तिशाली नहीं हूँ। उन बादलों को देखो जब वे मेरे ऊपर से होकर गुजरते हैं तो मैं चमक नहीं पाता। वे मुझसे अधिक शक्तिशाली हैं। आप किसी बादल को प्रस्ताव दीजिए।"

दुःखी चूहा अपना थैला उठाकर सूरज के पास से आकर सबसे बड़े बादल के पास गया।


"ऐ विशाल, श्वेत बादल! आप विशाल, शक्तिशाली और सुंदर हो। क्या आप मेरी सुंदर पुत्री से विवाह करोंगे?" चूहे ने बादल से कहा ।


बादल ने गरजकर कहा, "हे मूषकराज!, मैं उत्तरी पवन जितना शक्तिशाली नहीं हूँ। जब उत्तरी पवन नाराज होता है, वह मुझे उड़ाकर भूमि व समुद्र में ले जाता है। वह मुझे छोटा और कमजोर बना देता है। आप मेरे मित्र उत्तरी पवन के पास जाकर प्रार्थना कीजिए। "


चूहा बहुत दुःखी हुआ इसलिए वह अपने घर वापस आ गया। यदि उत्तरी पवन मेरी सुंदर पुत्री को देख लेता तो वह निश्चित ही मेरी पुत्री से विवाह कर लेता परंतु उत्तरी पवन बहुत दूर, ऊँचाई पर बर्फीले पर्वतों में रहता है। चूहा अपनी पुत्री को साथ लेकर उत्तरी पवन से मिलने गया।


एक लंबी यात्रा के बाद चूहा व उसकी पुत्री उत्तरी पवन के पास पहुँचे।


“ऐ विशाल उत्तरी पवन, मेरी सुंदर पुत्री से विवाह कीजिए।" चूहे ने विनम्रतापूर्वक विनती की।


“मैं शक्तिशाली और विशाल नहीं हूँ। मेरे साथ आओ मैं तुम्हारी भेंट अपने से अधिक शक्तिशाली से


करवाऊँगा,” उत्तरी पवन ने कहा। उत्तरी पवन ने चूहे व उसकी पुत्री को उठाकर आरामपूर्वक व ध्यान से दोनों को एक ऊँचे स्तंभ के पास रख दिया।


यह स्तंभ यहाँ सौ वर्षों से स्थित है,” उत्तरी पवन ने कहा- "मैं बहुत अधिक गति से इस पर से होकर गुजरता हूँ लेकिन यह जरा-सा भी नहीं झुकता । अपनी पुत्री के विवाह का प्रस्ताव आप इस स्तंभ को दीजिए। ' यह कहकर उत्तरी पवन दूर उड़ गया।


चूहा और उसकी पुत्री दुःखी मन से स्तंभ के पास पहुँचे। चूहे ने स्तंभ से अपनी बेटी का विवाह करने को कहा।


“मैं पुराना व बदसूरत हूँ। अगले वर्ष तक मैं निश्चित रूप से गिर जाऊँगा। मेरे आस-पास रहने वाले चूहे मुझे पूरा खा जाएँगे। वे चूहे मुझसे अधिक शक्तिशाली हैं। तुम्हें अपनी पुत्री का विवाह उनमें से किसी चूहे से करना चाहिए।" स्तंभ ने कहा।


चूहा और उसकी पुत्री चूहों के पास गए। एक सुंदर और बहादुर चूहा उन्हें अपने घर ले गया और उनकी दावत की।


बूढ़े चूहे ने अपनी पुत्री का विवाह उस चूहे से कर दिया। चूहे की पुत्री और वह चूहा खुशी-खुशी साथ- साथ रहने लगे। बूढ़ा चूहा भी अब खुश था।

1 टिप्पणी:

Blogger द्वारा संचालित.