जब शिव ने मस्तक पर धारण किया चंद्रमा

 चंद्रमा का जन्म फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुआ था। शिव-पार्वती के विवाह की इस तिथि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। शिव ने चंद्रमा को इसी दिन अपने मस्तक पर धारण किया था।


ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। मन जिसकी कोई थाह नहीं है। नव ग्रहों में रानी और संबंधों में मां के रूप में प्रतिष्ठित, कोमल भावनाओं का प्रतीक चंद्रमा राजसी सुख भी देता है। अन्य देवी-देवताओं की तरह इसकी जयंती नहीं मनाई जाती ।


मत्स्य एवं अग्नि पुराण में ऐसा वर्णन है कि जब ब्रह्माजी सृष्टि की रचना कर रहे थे, तो उन्होंने संकल्प से अपने दस मानस पुत्रों की उत्पत्ति की। इनमें अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, मरीचि, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष और नारद थे। इनमें से अत्रि ऋषि का विवाह प्रजापति कर्दम और देवहूति की कन्या अनसूया से हुआ। अनसूया से दुर्वासा, दत्तात्रेय और सोम नाम से तीन पुत्र हुए। सोम ही चंद्र के नाम से जाने जाते हैं। वैदिक काल में सोम का स्थान प्रमुख देवताओं में था । सूर्य, अग्नि और इंद्र आदि देवताओं की तरह सोम के भी स्तुति मंत्र प्रचलित हैं।


चंद्रमा के जन्म की एक अन्य कथा भी है। पौराणिक कथा के अनुसार जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, तो उसमें से चौदह रत्न निकले थे। चंद्रमा इन्हीं में से एक थे। यद्यपि ग्रह रूप में चंद्रमा की उपस्थिति समुद्र मंथन से पहले भी थी। समुद्र से निकले चौदह रत्नों में से दो को शिव ने ग्रहण किया। एक, कालकूट विष को और दूसरे चंद्रमा को। ऐसी मान्यता है कि जब विष की ज्वाला से शिव का मस्तिष्क जलने लगा तो उसे शीतलता प्रदान करने के लिए उन्होंने मस्तक पर चंद्रमा को धारण कर लिया।


इन कथाओं के बीच चंद्रमा के जन्म का पद्म पुराण में भी जिक्र आता है। ब्रह्माजी ने अपने मानस पुत्र अत्रि को सृष्टि के विस्तार आज्ञा दी। ऋषि अत्रि ने 'अनुत्तर' नाम का तप करना आरंभ कर दिया। तप करते हुए ऋषि के नेत्रों से जल के कुछ कण टपक गए। दिव्य रोशनी से जगमगाते हुए उन कणों को, पुत्र की कामना से दिशाओं ने स्त्री रूप में उसे धारण कर लिया। लेकिन वे उस तेज को संभाल नहीं पाईं और उसे त्याग दिया। ब्रह्माजी ने उस त्यागे हुए गर्भ को पुरुष रूप दिया। यही पुरुष रूप चंद्रमा है। चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की सत्ताइस नक्षत्र कन्याओं से हुआ।


दिन को प्रकाशमान सूर्य करता है। लेकिन रात के अंधकार को दूर करने का कार्य चंद्रमा करता है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है।



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