कुसंगति का परिणाम

किसी किसान के पास एक ऊँट था। वह दिनभर ऊँट से काम लेता, परंतु चारा-पानी न देता । रात के समय वह ऊँट को खोल देता। ऊँट गाँव के बाहर इधर-उधर भटककर पेड़ों की पत्तियाँ खाकर अपना पेट भरता। प्रात:काल शीघ्र ही किसान उसे पकड़कर ले आता।


ऊँट दिनभर किसान के खेत में काम करता। उसकी गाड़ी खींचता। परंतु किसान था कि उसकी तनिक भी परवाह न करता था। यूँ ही दिन बीत रहे थे।


एक रात ऊँट की भेंट एक सियार से हुई। सियार ने उससे मित्रता कर ली। वास्तव में सियार जानता था कि बड़े डील-डौल का यह प्राणी भविष्य में उसके काम आ सकता है। इस कारण उसने ऊँट से मित्रता की। ऊँट को धूर्त सियार की वास्तविकता का कुछ भी पता न चला।

सियार और ऊँट रात को मिलने लगे। सियार ऊँट के प्रति सहानुभूति प्रकट करता और ऊँट उससे अपने प्रति होने वाले अत्याचार का वर्णन करता। एक रात सियार ने ऊँट से लाभ उठाने का निर्णय कर ही लिया। रात के समय जब उसकी भेंट ऊँट से हुई तो वह बोला, "भाई ऊँट, तुम ये पत्तियाँ खा-खाकर कब तक अपने आपको सताते रहोगे? क्या तुम्हें स्वादिष्ट वस्तुएँ खाने का शौक नहीं है?"


ऊँट बोला, “भाई सियार, मेरे भाग्य में कहाँ हैं ये सब वस्तुएँ। मुझे तो पत्तियाँ मिल जाएँ, यही बहुत है।"


वास्तव में सियार को खबर मिली थी कि नदी पार खेत में बहुत तरबूज और खरबूजे हैं। वह उन्हें खाना चाहता था, परंतु नदी पार करना उसके वश में न था। ऊँट पर सवारी करके नदी सरलता से पार की जा सकती थी।


"नहीं-नहीं, मैं तुम्हें इस प्रकार दुखी होते नहीं देख सकता। आज मैं तुम्हें दावत दूँगा नदी पार मेरे मित्र का खेत है। मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर नदी के पार चलो। वहाँ उसने स्वादिष्ट तरबूज और खरबूजे उगाए हैं।"


ऊँट उसकी बातों में आ गया और उसे अपनी पीठ पर बैठाकर चल दिया।


नदी पार जाकर ऊँट ने सियार को अपनी पीठ से उतार दिया। सियार ने उससे कहा कि इन खेतों में वह निर्भय होकर तरबूज और खरबूजे खा सकता  है। यह कहकर सियार एक ओर जाकर खाने लगा। वह जल्दी-जल्दी खा रहा था कि कहीं खेत के रखवाले उसे देख न लें। उसने शीघ्र ही अपना पेट भर लिया। परंतु ऊँट अभी भी तरबूज खा रहा था। बड़ा आकार होने से उसे पेट भरने में देर लगती है।


जब काफी देर हो गई तो सियार ने सोचा कि यह तो सारी रात खाता ही रहेगा। क्यों न जोर से स्वर निकालकर रखवालों को जगा हूँ। वे इसे मारकर खेत से निकाल देंगे और यह वापस चलने को मजबूर हो जाएगा। उसने ऐसा ही किया।


सियार का ऊँचा स्वर सुनकर रखवाले जाग गए। उन्होंने देखा कि ऊँट सारी फसल चट किए जा रहा है। उन्होंने लाठियों से ऊँट को बहुत मारा। सियार छिपकर सारा तमाशा देखता रहा । इस प्रकार कुंसंग के कारण ऊँट को न केवल चोरी करनी पड़ी, अपितु चोरों वाली मार भी खानी पड़ी। वह समझ गया कि यह सब सियार की शरारत है, परंतु बोला कुछ नहीं। लँगड़ाता हुआ वह खेतों से बाहर भागा और सियार को वहीं छोड़कर नदी में प्रवेश कर गया।

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