सरस संगीत

अदिति को नानी के घर आए पंद्रह दिन हो गए थे। वह रोजाना नानी से कहानी सुनाने को कहती परंतु नानी हँसकर टाल जातीं। अदिति नानी से रूठ जाती और नानी हँसकर अदिति को तरह-तरह से बहकातीं। अंततः वह उसे मना ही लेती थीं। इस प्रकार कहानी सुनाने का बहाना बनाकर वे अदिति को सारा दिन बहलाए रखती थीं।

अदिति के माता-पिता नैनीताल में रहते हैं। वह अपनी नानी के पास छुट्टियों में आई थी। नानी ने उसे प्रतिदिन कहानी सुनाने को कहा था जिससे अदिति उनके पास रुक गई थी। आज तो अदिति नानी कह दिया कि या तो नानी कहानी सुनाएँ नहीं तो वह तुरंत ही नैनीताल मम्मी-पापा के पास जा रही है। नानी का उसे तरह-तरह से रूठना देखकर, हँसते-हँसते बुरा हाल हो जाता था। आज भी अदिति का रूठना देखकर उनसे हँसे बिना न रहा गया। अदिति को प्यार से पुचकारकर नानी ने पूछा, "अच्छा, बताओ हाथी की कहानी सुनोगी या गधे की ?"

"गधे की, " अदिति पैर पटककर बोली। नानी ने अदिति को गधे की कहानी सुनाई जो इस प्रकार है-

किसी गाँव में एक धोबी रहता था। उसके पास कई गधे थे। उन सब गधों में एक गधा खूब मोटा था। वह स्वयं को बहुत बड़ा गवैया समझता है। वह अपना गीत दूसरों को सुनाने के लिए "चीपों-चीपों' करके रेंकने लगता।

धोबी को उसका रेंकना बहुत बुरा लगता था। सब गधों में वह गधा ही सबसे ज्यादा रेंकता। न दिन देखता न रात खुद को ऊँचा गवैया समझ राग अलाप देता। दिन व्यतीत हो रहे थे। एक रात्रि जब गधे ने अपना राग शुरू किया तो धोबी की नींद उचट गई। उस समय उसे गधे पर बहुत क्रोध आया । गधे का राग बंद न होने पर उसने एक मोटा डंडा उठाया और लगा गधे को पीटने । गधा चुपचाप पिटता रहा। सभी गधे उसे पिटता देखते रहे। झुंझलाता हुआ धोबी गधे को पीटकर वापस चला गया।

धोबी के जाने के पश्चात् वह गधा दूसरे गधों से बोला, “हमारा स्वामी बहुत रूखे स्वभाव का है। संगीत से उसे तनिक भी प्रेम नहीं है। गायन की कला तो उसे आती ही नहीं। लेकिन तुम सब लोग चाहो तो मैं संगीत सिखाने के लिए तुम्हें अपना शिष्य बना सकता हूँ। "

दूसरे गधे उससे बोले, "भाई! तुम अपना संगीत अपने पास ही रखो। तुम्हारा संगीत सीखकर हमें धोबी के डंडों की मार पुरस्कार में नहीं लेनी है।" गधा बोला, "तुम सब मूर्ख हो । गायन का तनिक भी महत्त्व नहीं समझते। "

एक दिन वह गधा बाजार के रास्ते जा रहा था। उसने देखा कि एक बड़ा-सा ऊँट खड़ा बलबला रहा है। गधा बड़ा प्रसन्न हुआ। वह ऊँट के पास गया और बोला, "गायनाचार्यजी, आपका स्वर तो अद्भुत है परंतु आप यहाँ अकेले क्यों गा रहे हैं?'

ऊँट बोला, "क्या करूँ भाई, संसार में गवैए तो रहे नहीं, गायन का रस समझने वाले भी नहीं रहे। इसलिए मैं अकेले थोड़ा-सा गाकर संतोष कर लेता हूँ।" गधा बोला, "मैं भी गायक हूँ। हम दोनों मिलकर गाएँ तो ऐसा मजेदार संगीत जमेगा कि लोग देखते रह जाएँगे। इस बाजार के दूसरे

सिरे पर किसी के यहाँ कोई उत्सव हो रहा है। बहुत लोग जुटे हैं। ये लोग तनिक भी नहीं जानते कि संगीत किसे कहते हैं। कोई 'पीं पी' करता है, कोई 'तुन-तुन' करता है और कोई नन्हें झींगुर के समान स्वर निकालता है। आप मेरा साथ दें तो हम लोग सबको समझा सकेंगे कि सरस संगीत कैसा होता है। बेचारे का उत्सव सफल हो जाएगा। "

बाजार के दूसरे सिरे पर एक उत्सव हो रहा था। खूब भीड़ लगी थी। बड़े-बड़े गायक आए हुए थे। मृदंग, सितार, जलतरंग जैसे सुंदर बाजे बज रहे थे। गवैए लोग बड़े सुंदर भजन गा रहे थे।

ऊँट को गधे की बात पसंद आ गई। वह गधे के साथ चल पड़ा। ऊँट बलबलाने लगा और गधा जोर-जोर से रेंकने लगा। दोनों दौड़ते हुए उत्सव में जा घुसे। दौड़ते, बलबलाते ऊँट और रेंकते गधे को देखकर उत्सव में गड़बड़ होने लगी। लोग उठ उठकर जाने लगे। भला ऊँट और गधे के सरस संगीत के आगे उत्सव का संगीत कैसे चलता । उत्सव में बाधा पड़ने से लोगों को बड़ा क्रोध आया। वे लाठियाँ लेकर गधे और ऊँट पर टूट पड़े।

मार के आगे दोनों का संगीत का बुखार उतर गया। वे सिर पर पैर रखकर वहाँ से भागे गधा कहता जा रहा था, “मनुष्य बड़े मूर्ख होते हैं। वे जानते ही नहीं कि संगीत किसे कहते हैं। उन्हें गाना सुनाना ही व्यर्थ है। "

कहानी सुनाकर नानी चुप हो गई। अदिति ने हँसकर टोकरी एक ओर रखी और नानी की गोद में बैठ गई। नानी बोली, “बेटी, जो अपनी योग्यता न समझकर और अपने अवगुणों को गुण मान बैठता है, उसकी गधे और ऊँट जैसी ही दुर्गति होती है।

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