मैं एक सुनहरा पर्वत चाहता हूँ।
हमें अपनी किसी भी शक्ति का प्रयोग सदैव लोगों की भलाई के लिए करना चाहिए। हमें लालच व धूर्तता के कार्य नहीं करने चाहिए।
माँ-लिआँग चीन का एक गरीब नवयुवक था। वह बहुत दयालु, ईमानदार और सज्जन था। वह हमेशा गरीब और जरूरतमंद लोगों की सहायता करने के लिए उत्सुक रहता था। वह एक चित्रकार था। वह अपने चारों ओर की प्रत्येक वस्तु के चित्र बनाना पसंद करता था। पूरे दिन कठोर मेहनत करने के बाद वह अपने कमरे में बैठ जाता और अपने बनाए चित्रों में चित्रकारी करता।
एक रात, उसने सपने में देखा कि एक बूढ़ा व्यक्ति उसे एक जादुई पेंट ब्रश दे रहा है। और उससे कह रहा है, कि "इस ब्रश को गरीब लोगों के हित के लिए प्रयोग करो।" जब वह नींद से जागा, वह अपने कैनवास के पास रखे एक नए पेंट ब्रश को देखकर आश्चर्यचकित हुआ। उस दिन से जब कभी लोगों को उसकी सहायता की आवश्यकता होती वह उस पेंट ब्रश का प्रयोग करता। एक बार उसने देखा कि लोगों के पास अपने खेतों को सींचने के लिए बिल्कुल जल नहीं था। उसने एक नदी का चित्र बनाया और नदी अस्तित्व में आ गई। लोग उस नदी के जल को पीने व खेत सींचने में प्रयोग करने लगे।
एक दिन, उसने देखा कि लोगों को अपने कंधों पर हल रखकर खेत की जुताई करनी पड़ रही थी क्योंकि उनके पास बैल नहीं थे। माँ लिऑग ने दो बैलों के चित्र बनाए और दोनों बैल अस्तित्व में आ गए। लोगों ने उन बैलों का प्रयोग अपने खेत जोतने में किया।
इस प्रकार जब कभी वह लोगों को संकट में देखता वह उन सभी लोगों की सहायता करने के लिए जादुई पेंट ब्रश का प्रयोग करता। लोग प्रसन्न थे। वे निःस्वार्थी गरीब लिऑग को प्रेम करते व उसका सम्मान करते।
उस गाँव का मुखिया एक लालची और धूर्त व्यक्ति था। जब उसने जादुई पेंटब्रश के विषय में सुना तब उसने वह पेंटब्रश छीनने का निश्चय किया। एक रात उसने अपने कुछ आदमी माँ लिऑग के घर भेजे। उन आदमियों ने माँ लिऑग से पेंटब्रश छीन लिया और उसे जेल में बंद कर दिया।
मुखिया बहुत खुश हुआ। उसने अपने सभी मित्रों को आमंत्रित किया और उन्हें जादुई पेंटब्रश दिखाया। तब उसने जादुई पेंटब्रश से बहुत से चित्र बनाए किंतु उनमें से कोई भी चित्र अस्तित्व में नहीं आया।
वह बहुत नाराज हुआ। उसने अपने आदमियों से माँ लिऑग को लाने को कहा। जब माँ लिऑग को उसके सामने उपस्थित किया गया तो मुखिया ने उससे कहा, "यदि तुम मेरे लिए कुछ चित्र बनाकर उन्हें अस्तित्व में ले आते हो तो मैं तुम्हें स्वतंत्र कर दूँगा।"
माँ लिऑग जानता था कि मुखिया एक घूर्त व्यक्ति है। इसलिए वह उसकी मदद नहीं करना चाहता था। अचानक उसने एक विचार सोचा। उसने मुखिया से कहा, "मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ किंतु तुम वचन दो कि तुम अपने कहे शब्दों का पालन करोगे।" मुखिया ने सभी व्यक्यितों के सामने वचन दिया।
“मैं एक सुनहरा पर्वत चाहता हूँ। मैं वहाँ सोना इकट्ठा करने के लिए जाऊँगा।" मुखिया ने माँ लिआँग से कहा।
माँ लिआँग मुस्कुराया। उसने अपने जादुई पेंट ब्रश से चित्र बनाना शुरू किया। उसने एक समुद्र का चित्र बनाया। यह देखकर मुखिया नाराज हो गया। मुखिया बोला, “तुमने समुद्र का चित्र क्यों बनाया? मैं समुद्र नहीं चाहता, मैं एक सुनहरा पर्वत चाहता हूँ। जल्दी से सुनहरे पर्वत का चित्र बनाओ।" माँ लिआँग पुनः मुस्कुराया । इस बार उसने एक सुनहरे पर्वत का चित्र बनाया जो बहुत दूर एक समुद्र में द्वीप के मध्य था।
जब मुखिया ने सुनहरा पर्वत देखा, वह बहुत खुश हुआ। "अब मेरे लिए एक बड़े जलयान का चित्र बनाओ। मैं वहाँ सोना इकट्ठा करने के लिए जाना चाहता हूँ।" मुखिया ने आदेश दिया।
एक बार फिर माँ लिआँग मुस्कराया और एक बड़े जलयान का चित्र बना दिया। धूर्त मुखिया जलयान में कूद गया। उसके अनेक मित्र व रिश्तेदार भी जलयान में चढ़ गए। तब जलयान द्वीप पर पहुँचने के लिए तैरने लगा।
जब जलयान समुद्र के मध्य में पहुँचा, तब माँ लिऑग ने एक बड़ी लहर बनाई। इस लहर ने मुखिया और उसके मित्रों व रिश्तेदारों को जलयान सहित समुद्र में डुबो दिया।
प्रत्येक व्यक्ति मुखिया से छुटकारा पाकर प्रसन्न हुआ। उन्होंने माँ लिआँग को उसकी चतुराई के लिए धन्यवाद दिया। इसके बाद, ईमानदार माँ लिऑग अपने परिवार के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहने लगा और गरीब लोगों की सहायता करने लगा।
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