स्वयं को छलते लोग

किसी समय की बात है, एक गाँव में चार भाई रहते थे। वे अत्यंत निर्धन थे। माता-पिता उनके बपचन में ही भगवान को प्यारे हो गए थे। किसी प्रकार अपना जीवन गुजारते हुए वे युवा हो गए। चारों भाई निर्धन तो थे ही, वे प्रथम श्रेणी के मूर्ख भी थे। उनकी मूर्खता तथा स्वार्थ ने उन्हें दरिद्र बनाए रखा। चारों भाई पुरखों के बनाए जिस स्थान पर रहते थे, वास्तव में वह एक अहाता था, जिसके चारों कोनों पर उन्होंने अपनी झोंपड़ियाँ बना रखी थीं। सभी अपनी-अपनी झोंपड़ी में रहते और अपने भाग्य को कोसते करते कुछ थे नहीं, सो प्रायः उन्हें भूखे पेट ही सो जाना पड़ता था।

दिन निकलते ही वे गाँव में खाली बर्तन लेकर घर-घर दूध छाछ माँगते। लोग दया करके उनके बर्तन में दूध-छाछ डाल देते। वे रूखी-सूखी रोटियाँ पकाते और दूध छाछ के साथ खाकर पेट भर लेते।

एक दिन गाँव के एक व्यक्ति को उन पर दया आ गई। उसने अपने गऊधन में से एक गाय उन लोगों को दे दी, जिससे उन्हें घर-घर दूध-छाछ न माँगनी पड़े।

"तुम लोग गाय की सेवा करना, इसे समय पर चारा-पानी देना। अब तुम्हें घर-घर दूध-छाछ माँगने की आवश्यकता नहीं रहेगी, " गाय देने वाला बोला। चारों भाई गाय को ले आए और अपने अहाते में बाँध कर भाँति-भाँति से उस पर अपना प्रेम प्रकट करने लगे। चारों भाइयों ने आपस में तय किया कि एक-एक दिन प्रत्येक भाई गाय को अपने पास रखेगा, उसका दूध निकालेगा और उसे चारा-पानी देगा। जिसकी बारी होगी, वही चारा-पानी देगा और दूध अपने प्रयोग में लेगा।

चारों भाई इस बात पर सहमत हो गए।

पहले दिन गाय को सबसे बड़े भाई के पास छोड़ा गया। उसने सोचा कि गाय अपने पूर्वस्वामी के घर चारा-पानी खाकर आई होगी, सो अब इसे वह सब देने की आवश्यकता नहीं है। उसने गाय का दूध दुहा परंतु उसे चारा पानी न दिया।

दिन बीत गया। सारा दिन और रात भर गाय भूखी-प्यासी खूंटे से बँधी रही। अगले दिन गाय दूसरे भाई के अधिकार में थी। उसने सुबह होते ही गाय अपने खूंटे पर बाँधी और उसका दूध निकाल लिया। परंतु उसने उसे चारा-पानी नहीं दिया। उसने सोचा कि अगले तीन दिनों तक मैं गाय को नहीं दुहुँगा, तब इसे चारा-पानी क्यों खिलाऊँ ? दिन भर गाय भूखी-प्यासी खूँटे पर बँधी रही।

अगले दिन तीसरे भाई ने गाय का दूध निकाला। उसने भी गाय को चारा-पानी नहीं दिया। उसने भी यही विचारा कि अगले तीन दिनों तक गाय का दूध मैं नहीं प्राप्त कर सकूँगा तब मैं इसे चारा-पानी क्यों दूँ ?

गाय दिन भर खूंटे से भूखी-प्यासी बँधी रही। कमजोरी से उसमें खड़े होने की शक्ति न बची थी। अब चौथे भाई की बारी आई। उसने भी ऐसा ही किया। दूध दुहा परंतु गाय को चारा-पानी नहीं दिया। भूखी-प्यासी गाय कब तक शरीर को ऊर्जा देती ? और. अंतत: क्या हुआ ?

भूख-प्यास से बेहाल गाय मूच्छित हो गई और उसने अपने प्राण त्याग दिए।

अब उन दुष्ट मूखों को गाँव में कोई दूध-छाछ नहीं देता। न ही उन स्वार्थी दुष्टों को अपने किए पर कोई पछतावा है।

मूर्ख और कर्त्तव्य से विमुख लोगों का कोई भला नहीं कर सकता!

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