नकली तेनालीराम
राजा कृष्णदेवराय अपने प्रमुख दरबारी तेनालीराम से बड़े प्रसन्न रहते थे। कारण स्पष्ट था कि तेनालीराम के पास प्रत्येक प्रश्न का उत्तर खोजने की चाबी रूपी मस्तिष्क जो था। राजा और राज्य की समस्याओं के समाधान तेनालीराम खेल-खेल में ही । खोज देता था।
तेनालीराम से सभी दरबारी ईर्ष्या करते थे। वे ऊपर से तो उसकी प्रशंसा करते, परंतु मन ही मन उसके विरुद्ध षडयंत्र रचते, राजा को उसके विरुद्ध उकसाते । तो भी तेनालीराम उनके षड्यंत्रों के जाल की तार-तार कर राजा कृष्णदेवराय का कृपापात्र बना रहता।
परंतु आज राजा कृष्णदेवराय दरबार में उदास बैठे थे। किसी दरबारी में उनसे कुछ पूछने का साहस न हो रहा था। तेनालीराम अभी दरबार में नहीं पहुँच पाया था। राजा ने उसे बुलाने का हुक्म दिया।
थोड़ी ही देर में तेनालीराम राजा के सामने विनम्र मुद्रा में उपस्थित हुआ। राजा ने तेनालीराम से कहा, "तेनालीराम, हमें विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि हमारे राज्य में प्रजा और अधिकारी भ्रष्ट होते जा रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप रिश्वतखोरी ने देश में जाल फैला लिया है। तुम जाकर पता लगाओ कि यह सब कैसे हो रहा है और वे कौन लोग हैं। "
तेनालीराम ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया, "महाराज, मैं तो छुट्टी पर जा रहा हूँ। कल ही आपने मेरे प्रार्थना-पत्र को स्वीकार करके मुझे पंद्रह दिनों का अवकाश प्रदान किया है। "
यह सुनकर राजा ने कहा, “तुम्हारे जाने के बाद हम कैसे काम चलाएँगे? रिश्वतखोरों का तो हमें शीघ्रातिशीघ्र पता लगाना ही होगा। " तेनालीराम ने कहा, "हुजूर, आप फिक्र न करें, मैं कल ही नकली तेनालीराम को भेज दूँगा।" अगले दिन वास्तव में एक नकली तेनालीराम राजा के दरबार में उपस्थित हो गया। राजा ने उससे हँसकर कहा "तुम शहर की सड़कें नापो और बताओ कि कौन-सी सड़क कितनी लंबी-चौड़ी है।" नकली तेनालीराम ने लंबा फीता लिया और लगा शहर में घूमने। वह जहाँ भी सड़क नापता लोग जमा हो जाते और पूछते कि क्या कर रहे हो। लोगों के प्रश्न का तेनालीराम उत्तर देता, "सड़क चौड़ी होनी है। हो सकता है सड़क के चौड़ीकरण में तुम्हारे मकान गिराए जाएँ। "
यह सुनकर लोग घबरा उठते और उसे रिश्वत के रूप में देते और कहते, "ये रख लो और सड़क को इस प्रकार नापो कि हमारे मकान बच जाएँ।"
इस प्रकार कुछ ही दिनों में नकली तेनालीराम ने बहुत-सा धन एकत्र कर लिया। जिन अधिकारियों व मंत्रियों को इस बात का पता चला, उन्होंने भी उससे अपना हिस्सा माँगा।
एक शाम असली तेनालीराम राजा के पास आया और बोला, “महाराज, कल दरबार जाने से पहले आप मेरे साथ चलिएगा।" राजा की समझ में कुछ न आया परंतु उन्होंने 'हाँ' कर दी। अगले दिन राजा ने तेनालीराम के साथ जाकर देखा, नकली तेनालीराम राज्य के अधिकारियों व मंत्रियों के साथ मिलकर रिश्वत से प्राप्त धन का बँटवारा कर रहा था।
राजा कृष्णदेवराय ने पूछा, "परंतु,
तुम तो छुट्टी पर गए थे। तुम्हें यह सब कैसे पता लगा?"
'महाराज, इसलिए तो नकली तेनालीराम को भेजा था," तेनालीराम ने उत्तर दिया।
राजा और तेनालीराम को सामने पाकर सभी रिश्वतखोरों के चेहरे शर्म से लाल हो गए। तेनालीराम की सूझ-बूझ से यह सब संभव हो सका। राजा ने कहा- "तेनालीराम, रिश्वतखोर देश और समाज को दीमकों की तरह चट करके नष्ट कर डालते हैं। ये देश और समाज की बड़ी हानि करते हैं। इनसे सदैव सावधान रहना चाहिए।"
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